जूली आई लव यू (भाग - 17 - 23)
भाग - 17
मन्दिर समीप ही था. कैप्टन ने ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए कहा और दादी मां व जूली से अभी गाड़ी में ही रूके रहने का आग्रह किया। कैप्टन ने गाड़ी से उतरकर इधर-उधर गहरी दृष्टि डाली और मन में विचार किया - '' यह ऐंद्रजालिक इंद्रजाल फैलाकर मुझे भ्रमित करने का प्रयास कर रहा है। मुझे इसके इंद्रजाल को काटना ही होगा। यह भय उत्पन्न करने का प्रपंच रच रहा है। सैलानियों के हर समूह में अपने होने का भ्रम पैदा कर ऐसा इंद्रजाल रच रहा कि मेरी आंखें, दिल, दिमाग धोखा खा जायें। मुझे गुरूदेव द्वारा प्रदान अणिमा लघिमा सिद्धियों के अन्तर्गत आने वाली तांत्रिक साधना '' मारण '' का प्रयोग कर इस दुष्ट का नाश अभी करना होगा। जय अंजनेय जय महावीर! '' यह कहकर कैप्टन ने उछल कर छलांग लगाई और भ्रम पैदा करने वाले दुष्ट का सही अनुमान लगाकर उसकी गर्दन पर झप्पटा मारा। वह दुष्ट ऐसे तड़प उठा जैसे आकाशीय बिजली का घातक प्रहार उस पर हुआ हो। वह क्षण भर में तड़प तड़प कर काल का ग्रास बन गया। कैप्टन ने चैन की सांस ली और जहां गाड़ी खड़ी थी उस ओर बढ़ते हुए वह सोचने लगा कि - '' आखिर हमारी लोकेशन ट्रेस कैसे हो रही है और कौन कर रहा है? '' प्रश्न जटिल था। उत्तर सूझ नहीं रहा था पर हर संकट के पीछे जो शख्स था उसका नाम बिल्कुल स्पष्ट था और वह था मायावी शत्रु कुल गुरू अर्ध ज्ञान अहंकारी। सोचते सोचते कैप्टन गाड़ी के समीप पहुंच गया। वह कुछ कहता उससे पहले ही दादी मां ने कैप्टन की ओर प्रश्न भरी दृष्टि से देखते हुए पूछा - '' कैप्टन यह धमाका सा और चीत्कार के स्वर कैसे गूंज रहे थे आस पास? इज एवरीथिंग ओ के? '' कैप्टन थोड़े धीमे स्वर में बोला - '' दादी मां मायावी शत्रु कुल गुरु अर्ध ज्ञान अहंकारी ने हम पर इंद्रजाल के माध्यम से घातक प्रहार किया था इस बार। आप तो जानती ही हैं इंद्रजाल के अंतर्गत मंत्र तंत्र, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण आदि के माध्यम से किसी व्यक्ति को फंसाया जाता है। प्रतिद्वंद्वी को नुकसान पहुंचाने के लिए प्राचीन काल से इंद्रजाल तांत्रिक वर्ग का मुख्य हथियार रहा है। आज जब से हम गाड़ी में सवार होकर प्रभु अंजनेय के दर्शन के लिए निकले तब से ही दुष्ट अर्ध ज्ञान अहंकारी का एक ऐंद्रजालिक निरंतर मुझे भ्रमित व सम्मोहित करने का प्रयास कर रहा था पर गुरूदेव की कृपा से मुझे मूर्ख बनाना संभव ही नहीं है। अतः मैं अभी अभी चकमा देने वाले प्रतिद्वंद्वी का तांत्रिक साधना '' मारण '' के माध्यम से प्रहार कर वध कर के आ रहा हूं। '' जूली भी बहुत ध्यान से कैप्टन की बात सुन रही थी। वह तुरंत बोली - तांत्रिक साधना 'मारण ' यह क्या होती है? रिवॉल्वर जैसी। '' कैप्टन मुस्कुराते हुए बोला - '' लिटिल प्रिंसेस यह रिवाल्वर जैसी नहीं विद्युत के करंट वाले नंगे तार के प्रहार जैसी होती है। साधना के द्वारा साधक अपने शरीर में समाई आत्मविद्युत के प्रहार से किसी को भी मौत के घाट उतार सकता है। गुरुदेव की कृपा से आज मैंने भी आत्मविद्युत के प्रहार से प्रतिद्वंद्वी ऐंद्रजालिक को मौत के घाट उतार डाला। '' दादी मां ने कैप्टन को आशीर्वाद देते हुए कहा - '' कैप्टन तुम हमारे साथ न होते तो न जाने हम कैसे इन प्रपंचों से निकल पाते! अब तुम ऐसा करो आसपास स्नान की व्यवस्था देखकर स्नान कर मंदिर में आ जाओ तब तक हम मंदिर में तुम्हारी प्रतीक्षा करते हैं। '' कैप्टन ने हां में गर्दन हिलाई और दादी मां से सावधानी बरतने का आग्रह किया। कैप्टन स्नान हेतु आसपास ही व्यवस्था देखने गया। ड्राइवर ने मंदिर की पार्किंग में ही गाड़ी खड़ी कर दी। मंदिर में अन्य भक्तजन भी आये हुए थे। एक श्वेत धोती पहने जनेऊ धारण किये प्रौढ़ अवस्था वाले भक्त ने दादी मां को प्रणाम किया तो दादी मां आशीर्वाद देते हुए बोलीं - '' सदा सुखी रहो बेटा। एक बात बताईये आप यहां मंदिर के विषय में हमारा मार्गदर्शन कर सकेंगें। '' जय श्री राम जय श्री राम का जयकारा लगाते हुए वह भक्त अत्यन्त ही मधुर वाणी में बोला - '' क्यों नहीं माता जी। आप इतने संकटों का सामना कर यहां पहुंची हैं, मैं क्यों नहीं आपका मार्गदर्शन करूंगा। मेरा तो कार्य ही यही है (जूली के सिर पर स्नेह से हाथ रखता हुआ बोला) और यह इतनी प्यारी राजकुमारी कौन है? ' दादी मां ने उस भक्त को गौर से देखा। सोने जैसे वर्ण वाले उस भक्त के केश घुंघराले थे। नयनों में कुछ अद्भुत था जो सम्मोहित करता था। दादी मां के ह्रदय में एक प्रश्न आया और अनायास ही उस भक्त से पूछ बैठी - '' तुम्हें कैसे पता यह राजकुमारी है और हम बहुत संकट का सामना कर यहां पहुंचे हैं? '' वह भक्त दादी मां के प्रश्न पर हंसता हुआ बोला - '' शंका.. मुझ पर शंका... जला डालो शंका की लंका। मैं तो सब कन्याओं को राजकुमारी ही कहता हूं और बिना संकट झेले संकटमोचन के दरबार में भला कौन आता है! '' भक्त के इन वचनों का प्रभाव अद्भुत था। न जाने कैसे दादी मां की सारी शंकाएं मिट गयी। ह्रदय शांत हो गया और उन्होंने भक्त से मंदिर के संबंध में बताने का आग्रह करते हुए विनती की - '' कृपया मेरी विचलित अवस्था पर ध्यान न देकर मंदिर के विषय में हमारा मार्गदर्शन कीजिए। ''
वह भक्त मुस्कुरा कर बोला - '' माता वह देखो तीन लाख से अधिक थैलों में नारियल टांगे गए हैं भक्तों के. आज श्री राम जय राम जय जय राम का वंदन करते हुए मंदिर की ग्यारह परिक्रमा करना. थैला मंदिर में सौंप देना. एक टोकन मिलेगा. सौ दिन में मनोकामना पूरी हो जाएगी तब मंदिर प्राधिकरण को कॉल कर टोकन नम्बर बताना. पुजारी जी थैले से नारियल निकाल कर पूजा पूरी कर देंगें. शांत वातावरण वाले इस मंदिर के पुजारी बहुत मिलनसार हैं माता. अब जाइए और दर्शनों का लाभ उठाईये। '' दादी मां थोड़ा झुककर प्रणाम करने ही वाली थी कि उस भक्त ने तत्परता के साथ दूर हटते हुए यह कहते हुए रोक दिया - '' नहीं नहीं माता ऐसा न करें। मेरे लिए तो आप भी माता सीता के ही समान है। '' दादी मां व जूली ने एक बार फिर उस भक्त के नेत्रों में देखा जो अद्भुत थे। दोनों ने मंदिर की ओर एक कदम बढ़ाया ही था कि उन्हें धरती में एक दिव्य कंपन का अहसास हुआ। जूली ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे भक्त दूर दूर तक दिखाई नहीं दिया। जूली आश्चर्य चकित होते हुए बोली - '' दादी मां देखिये ना.... वह भक्त कहीं दिखाई नहीं दे रहा। '' जूली के यह वचन सुनते ही दादी मां ने भी सब ओर दूर दूर तक नजर को दौड़ाया पर वह भक्त कहीं नहीं दिखा बल्कि एक सुन्दर बालक उनकी ओर मुस्कुराता हुआ आता दिखाई दिया। जूली ने दादी मां की ओर देखते हुए पूछा - '' यह कौन बालक है दादी मां? यह हमारी ही ओर मुस्कुरा रहा है। कहीं... कहीं यह...कैप्टन तो नहीं.... ओ माई गॉड... यह रूप कैसे पलट लेता है!!!! (जारी)
भाग - 18
दादी माँ भी उस बालक को ध्यान से देखते हुए बोली - '' हम्म जिस तरह हमारी ओर मुस्कुरा रहा है तब निश्चित रूप से है तो यह कैप्टन ही पर वह भक्त कहाँ अदृश्य हो गया? कहीं???? '' यह कहते कहते दादी मां रूक गयी। जूली के समक्ष वह अपने शत्रु भय को प्रकट नहीं करना चाहती थी। इतने में वह बालक उनके समीप आ पहुंचा। उसने झुककर प्रणाम किया और बोला - '' दादी मां पहचाना मुझे??? मैं कैप्टन हूं। '' उसके यह कहते ही जूली रोमांचित होते हुए बोली - '' यस... आई गैस्ड राइट। '' यह कहते हुए जूली ने कैप्टन को बहुत गौर से देखा और बोली - '' कैप्टन हम आश्चर्यचकित हैं तुम ऐसा कैसे कर लेते हो!!!? इट्स रियेली अनबिलिवेबल!!! '' कैप्टन लिटिल प्रिंसेस जूली की इस प्रतिक्रिया पर प्रसन्न होता हुआ बोला - '' लिटिल प्रिंसेस इस संसार में कुछ भी अनबिलिवेबल नहीं है। आज हम जिन प्रभु के पावन धाम में खड़े हैं वह स्वयं अष्ट सिद्धि व नौ निधि के ज्ञाता हैं। अष्ट सिद्धि के प्रयोग से ही हनुमान जी कभी अत्यंत सूक्ष्म रूप (अणिमा सिद्धि ) कभी विशालकाय (महिमा सिद्धि) कभी भारी (गरिमा सिद्धि ) हो जाते हैं। इन्हीं अष्ट सिद्धियों में एक सिद्धि होती है ' प्राकाम्य ' सिद्धि। इसका अर्थ होता है जो भी इच्छा हो उसे प्राप्त कर लिया जाये। इसी सिद्धि के बल पर आकाश, पाताल में कहीं भी जाया जा सकता है। चिर युवा बने रहा जा सकता है और यही सिद्धि मन की इच्छानुसार देह धारण करने की शक्ति प्रदान करती है। गुरूदेव की कृपा से मैंने भी इन सिद्धियों पर अधिकार प्राप्त किया है। ''
दादी माँ कैप्टन की ओर देखती हुई बोली - '' बहुत सुंदर रूप धारण किया है तुमने पर कहीं वह भक्त भी तो कोई और ही रूप धर कर हमारा मार्गदर्शन तो नहीं कर रहा था. '' कैप्टन दोनों भौंहों को समेट कर एक दूसरे के समीप लाकर चिंतित स्वर में बोल उठा - '' भक्त??????? कौन भक्त दादी मां! मैंने आपसे सावधानी बरतने के लिए कहा था ना! '' दादी मां थोड़ा सकुचाते हुए बोला - '' हां... पर.. बजरंग बली के दरबार में क्या चिंता यही सोचकर हमने उस भक्त से बात की। वह बड़ा संयमी व त्रिकालदर्शी प्रतीत होता था। ऐसा लगता था जैसे उसे अतीत वर्तमान व भविष्य का पूरा ज्ञान है। उसके सानिध्य में विचलित ह्रदय को एक परम शांति का अनुभव हो रहा था। उसकी दृष्टि निर्मल थी और वह हर स्त्री में माता सीता के दर्शन करता था पर एक क्षण को हमारी दृष्टि उससे क्या हटी वह न जाने कहाँ चला गया? '' कैप्टन रहस्यमयी मुस्कान के साथ बोला - '' मैं बताता हूं कि वह कहां चला गया? आईये मंदिर के भीतर चले, वह वहीं मिल पायेगा। '' यह कहकर कैप्टन आगे आगे और दादी मां व जूली पीछे पीछे चल दिये। मंदिर में प्रवेश करते ही जूली की दृष्टि ज्यूं ही अंजनेय प्रभु के नयनों पर गयी वह आश्चर्यचकित होते हुए दादी मां का हाथ हिलाते हुए बोली - '' दादी मां प्रभु अंजनेय के नयन तो देखिये। यह नयन तो बिल्कुल उस भक्त के समान ही हैं। यह कैसे हो सकता है दादी मां!!!! '' दादी मां भी क्षण भर के लिए विस्मित होकर रह गयी। वास्तव में प्रभु नयन बिल्कुल उस भक्त के समान ही थे। कैप्टन मुस्कुराता हुआ बोला - '' प्रभु अंजनेय अपने सच्चे भक्तों को ऐसे ही साक्षात दर्शन देते हैं। वह हर क्षण हमारी रक्षा कर रहे हैं। ब्रह्मचारी होने के कारण वह किसी स्त्री को अपने समक्ष झुकने नहीं देते, वह स्त्री को माता का सम्मान देते हैं। मैं तो दादी मां के यह कहते ही समझ गया था कि वह भक्त और कोई नहीं बल्कि प्रभु अंजनेय ही थे, जब दादी मां ने बतलाया था कि वह भक्त सभी स्त्रियों को माता सीता के समान सम्मान करता था। '' दादी मां व जूली ने प्रभु की विचित्र लीला का संज्ञान होते ही उन्हें प्रणाम किया। कैप्टन ने दादी मां व जूली के साथ नारियल का थैला व दक्षिणा पुजारी जी को सौंप कर मंदिर की ग्यारह प्रदक्षिणा की व वे टोकन नंबर, फोन नंबर लेकर प्रभु अंजनेय को बारंबार प्रणाम कर प्रसाद ग्रहण कर गाड़ी की ओर बढ़ लिये। मंदिर से बाहर निकलते ही कैप्टन बालक रूप से पुनः अपने वास्तविक रूप श्वान रूप में परिणत हो गया।
गाड़ी में सबके सवार होते ही कैप्टन ने ड्राइवर को धर्मपुरी चलने का आदेश दिया। प्रातः के नौ बजे वे कृष्णागिरी से धर्मपुरी की ओर रवाना हुए। कुल पचपन मिनट का रास्ता था। कैप्टन ने लिटिल प्रिंसेस को इशारे से बाहर दिखाते हुए कहा - '' लिटिल प्रिंसेस धर्मपुरी के आस पास झरने ही झरने हैं। वहाँ पहुँच कर देखना लिटिल प्रिंसेस कितने सुंदर सुंदर मंदिर हैं। कोट्टई कोविल, चेनरया पेरूमल मंदिर और श्री तीरथगिरीक्ष्वर मंदिर तो धर्मपुरी के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर हैं। न केवल मंदिर बल्कि धर्मपुरी तो मंदिरों व चर्चों का शहर कहलाता है।यहां कुछ देर रुककर आगे बढ़ेंगे दोपहर का भोजन लेकर। आपकी क्या राय है दादी मां? '' दादी मां ने सहमति में सिर हिलाकर जूली की ओर देखा. जूली हल्का सा मुस्करा दी. धर्मपुरी पहुंचने पर गाड़ी ''साई संगीत'' नाम के शाकाहारी पारिवारिक रेस्तरां पर रुकी। दादी मां वॉश रूम को गयी तो जूली रेस्तरां में इधर-उधर घूमने लगी। कैप्टन निरंतर उस पर दृष्टि लगाये हुए था तभी जूली के पास आकर एक बहुत सुंदर युवती ने हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया। जूली उससे हाथ मिलाने ही वाली थी कि कैप्टन कूं कूं करता हुआ दोनों के बीच पहुंच गया। जूली का ध्यान उस युवती से हटकर एकाएक कैप्टन पर चला गया। वह घुटनों के बल बैठ गयी और कैप्टन का सिर सहलाते हुए बहुत प्यार से पूछने लगी - '' क्या हुआ कैप्टन? कोई चोट तो नहीं लग गयी। '' कैप्टन ने पूंछ हिलाकर जूली की आंखों में आंखें डालकर उस युवती का प्रतिबिंब जूली की आंखों में देखा। देखते ही वह उस युवती पर उछल पड़ा। वह युवती अपना भेद खुलने के डर से तुरंत ही वहां से भाग ली पर कैप्टन अब कहाँ छोड़ने वाला था उसे ! जूली भी उस ओर आगे बढ़ने ही वाली थी कि किसी ने उसकी बांह कसकर पकड़ ली। यह दादी मां थी जो कुछ कुछ समझ चुकी थी कि यहां क्या घटित हो रहा था? '' जूली दादी मां से लिपट गयी। उसकी दिल की धड़कन तेज चल रही थी उधर कैप्टन दूर एक वृक्ष के नीचे मुंह में एक मृत नागिन को दबाये तेजी से कूदता फांदता दिखाई दिया। दादी मां ने जूली की दृष्टि उस ओर नहीं जाने दी और उसे लेकर रेस्तरां के अंदर चली गई। थोड़ी देर में कैप्टन भी वहां आ पहुंचा। दादी मां ने कैप्टन की ओर कृतज्ञ भाव से देखा और बोली - '' वह नागिन यहां हमारे ही पीछे आई थी ना कैप्टन? '' कैप्टन ने हां में गर्दन हिला दी पर जूली विस्मित होकर बोली - '' नागिन???? यहाँ तो कोई नाग नागिन नहीं दिखाई दिये दादी मां। '' कैप्टन जूली की दुविधा दूर करता हुआ बोला - '' लिटिल प्रिंसेस जिस बला की खूबसूरत युवती से आप हाथ मिलाने वाली थी वह वास्तव में इच्छाधारी नागिन ही थी। वह हाथ मिलाने के बहाने आपको डसकर मार डालना चाहती थी। आगे से सावधान रहें आप। '' जूली को कुछ क्षण इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ और जैसे ही उसे अहसास हुआ कि वह मृत्यु के कितने करीब थी वह सिहर उठी। दादी मां ने जूली की मनोदशा का अनुमान लगाते हुए उसे ह्रदय से लगा लिया। दादी मां की आंखें भी नम थी।
(जारी)
भाग - 19
दादी मां जूली को समझाते हुए बोली - '' लिटिल प्रिंसेस इस तरह घबराते नहीं हैं। तुम तो बहुत बहादुर हो बिल्कुल अपने पिताजी महाराज की भांति। '' पिताजी महाराज का जिक्र आते ही जूली एकदम से खुश हो गयी। दादी मां की हथेली अपनी दोनों हथेलियों के बीच लेते हुए चहक कर बोली - '' पिताजी महाराज जैसी हूं मैं..... सच में दादी मां!!! दादी मां उनसे भेंट कराईये ना। '' जूली के आग्रह की गंभीरता को दादी मां भलीभांति समझती थी।
दादी माँ जूली को आशा बंधाते हुए बोली - '' लिटिल प्रिंसेस गुरूदेव की कृपा से शीघ्र ही तुम्हें पिताजी महाराज के दर्शन होंगें ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है। '' जूली की आंखों में चमक आ गयी और वह चहकते हुए बोली - '' सच दादी मां... फिर जल्दी से जल्दी हमें गुरूदेव के पास पहुंचना है। अब हमें कितना और समय लगेगा उनके आश्रम तक पहुंचने में? '' इस पर दादी मां ने जूली के सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए कहा - '' अब यह तो तुम्हारा बैस्ट फ्रेंड कैप्टन ही बता सकता है पर पहले दोपहर का भोजन करना चाहिए। '' जूली ने मुस्कुराते हुए भोजन के लिए हामी भरी और कैप्टन की ओर प्रश्न भरी दृष्टि से देखा। कैप्टन दोनों पंजों को जोड़कर अभिवादन करता हुआ बोला - '' अधिक समय नहीं लगेगा गुरुदेव के आश्रम तक पहुंचने में बस कोई और षड्यंत्र न रचा जाये शत्रु कुलगुरु अर्ध ज्ञान अहंकारी द्वारा। ''
दोपहर का भोजन लेकर कैप्टन दादी मां व जूली के साथ धर्मपुरी से सलेम के लिए गाड़ी से निकल लिए। गाड़ी 112 किलोमीटर प्रति घंटा की औसत रफ्तार से दौड़ रही थी. कुशल ड्राइवर ने 33 मिनट में धर्मपुरी से सलेम तक की 69.69 km की दूरी तय कर दी।
दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के उत्तर मध्य भाग में स्थित सेलम सिटी में प्रवेश करते ही कैप्टन ने दादी मां को सूचित करते हुए कहा - '' दादी मां हम तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 340km की दूरी पर स्थित सेलम सिटी पहुंच चुके हैं. इसे मैंगों सिटी के नाम से भी जाना जाता है। दादी मां यह एक प्रसिद्ध पर्यटन व तीर्थस्थल भी है। यदि आप की इच्छा हो तो आप इस लोकप्रिय शॉपिंग स्पॉट से खरीदारी कर सकती हैं। यहां की बनी चांदी की पायलें बहुत पसंद की जाती हैं। कपास और रेशम के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध सेलम में अच्छी क्वालिटी के कपड़ों का उत्पादन होता है। आप चाहें तो कुछ खरीदारी कर सकती हैं। ''
दादी माँ ने जूली की ओर देखा और पूछा - '' लिटिल प्रिंसेस क्या तुम कुछ खरीदारी करना चाहती हो? '' जूली कुछ सोच विचार में उलझे हुए बोली - '' नहीं दादी मां। मैं शीघ्र अति शीघ्र गुरूदेव के आश्रम पहुंचना चाहती हूं। मुझे पिता जी महाराज से शीघ्र मिलने की लालसा है और क्या दादी मां माता श्री के दर्शन भी साथ-साथ हो जायेंगे? ''
जूली के प्रश्न पर दादी मां कुछ असमंजस में पड़ते हुए बोली - '' इस प्रश्न का उत्तर केवल गुरूदेव ही दे सकते हैं। मैं पिछले पांच वर्षों से वहां से दूर हूं ना। '' जूली भोलेपन के साथ बोली - ''... पर आपके पास तो स्मार्ट फोन हैं ना। आप उस पर ही पिताजी महाराज व माता श्री से संपर्क में रह सकती थीं। ओह नो... आप न तो व्हाटस्एप पर हैं और न ही इंस्ट्राग्राम पर और न ही मेटा पर.... किसी भी सोशल नेटवर्किंग साइट पर आपका एकाउंट ही नहीं है। हमने जितना पढ़ा है उसके अनुसार आजकल यह जरूरी है। अगर आप इन पर होती तो पिता जी महाराज से रोज की जानकारी मिल जाया करती पर..। '' यह कहते हुए जूली उदास हो गयी तब कैप्टन पूंछ हिलाता हुआ जूली की ओर देखते हुए बोला - '' लिटिल प्रिंसेस आप सामान्य नागरिक नहीं हैं। आप राजकुल से हैं। आपके राजकुल में सुरक्षा कारणों से सोशल साइट्स पर अकाउंट बनाने पर प्रतिबंध है। खैर छोड़िए आप शीघ्र ही गुरूदेव के आश्रम पहुंचना चाहती हैं ना तो हम यहां पलभर भी न रूकेंगें।
दादी माँ आप आज्ञा दीजिये. '' दादी माँ स्वयं शीघ्र अति शीघ्र जूली को सुरक्षित लेकर गुरूदेव के आश्रम पहुंचना चाहती थी। उन्होंने तुरंत गाड़ी आगे बढ़ाने की आज्ञा दे दी. गाड़ी नमक्कल की ओर निकल पड़ी।
इधर जूली जल्द से जल्द गुरूदेव के आश्रम की ओर पहुंचने की आकांक्षा से बिना कहीं रूके आगे बढ़ते जाना चाहती थी उधर शत्रु पक्ष में नये षड्यंत्र रचने पर विचार किया जा रहा था। शत्रु पक्ष कोई राजा महाराजा नहीं था बल्कि वाममार्गी प्रचंड तंत्र मंत्र साधक कुलगुरु अर्धज्ञान अहंकारी था। वह न केवल देवी काली, अष्ट भैरवी, नौ दुर्गा, दस महाविद्या, चौंसठ योगिनी आदि देवियों की साधना करता बल्कि देवताओं में बटुक भैरव, काल भैरव, नाग महाराज की साधना भी करता। वह वाममार्गी साधना के नकारात्मक पथ पर बहुत आगे बढ़ चुका था। निषेधात्मक साधना के अंतर्गत वह यक्षिणी, पिशाचनी, अप्सरा, वीर साधना, गंधर्व साधना, नायक-नायिका साधना, डाकिनी-शाकिनी, विद्याधर, सिद्ध, दैत्य, दानव, राक्षस, गुह्मक, भूत, वेताल, अघोर सभी की साधना करने में रत रहता। ऐसी तांत्रिक क्रियाओं के चक्कर में उसने बहुत से सज्जनों का जीवन नर्क बना डाला था। वह लंकापति रावण की भांति तांत्रिक शक्तियों के बल पर सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपना अधिकार चाहता था। इसके लिए वह श्मशान में कितने ही वर्षों से घोर तपस्या कर रहा था। भगवान शिव को गुरु मानकर वह मुर्दे के पास बैठकर कठोर तपस्या में रत रहता। इसी क्रम में वह अनेक दैवीय शक्तियां अर्जित कर चुका था। अनेक सिद्धियों पर अधिकार कर चुका था। वह जानवर की खाल शरीर के निचले हिस्से में धारण करता और आहार में पशु का ही नहीं इंसानी मुर्दे के मांस का भक्षण भी करता। अघोरी बाबा के रूप में अपने शिष्यों में प्रसिद्ध कुलगुरू अर्द्ध ज्ञान अहंकारी के दर्शन मात्र के लिए दूर-दूर से तांत्रिक चेले आते थे और पूरी आर्य भूमि के राजाओं के बलाबल का परिचय देकर पृथ्वी पर एकछत्र राज करने की उसकी महत्वाकांक्षा को और भी प्रबल करते।
यद्यपि अघोरी बाबा के लिए परिवार से दूर रहकर पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करना , जीवित होते हुए भी अपने परिवार वालों का त्याग करना अर्थात अपना श्राद्ध तक कर देना तो आवश्यक हो ही जाता है वहीं अपनी साधना के दौरान मोह-माया का त्याग जरुरी है क्योंकि अघोरी उन्हें कहा जाता है जिनके भीतर से अच्छे-बुरे, सुगंध-दुर्गन्ध, प्रेम-नफरत, ईर्ष्या-मोह जैसे सारे भाव मिट जाएं पर साधना के अन्य मार्गों पर कुलगुरू अर्धज्ञान अहंकारी कितना भी दृढ़ हो लेकिन ईर्ष्या और मोह पर वह विजय नहीं प्राप्त कर पाया था और इनके वशीभूत होकर ही वह किसी का भी सर्वनाश करने से पीछे नहीं हटता था।
(जारी)
भाग - 20
न केवल तंत्र मंत्र बल्कि शत्रु कुलगुरू अर्ध ज्ञान अहंकारी वर्तमान में चल रही तकनीकी क्रांति की हर अपडेट रखता था। उसका एक चेला जापानी योशिनोरी युकावा हर वैज्ञानिक अनुसंधान में उसका भरपूर सहयोग करता। वह अपने गुरू का डंका न केवल पृथ्वी वरन पूरे ब्रह्माण्ड में बजाना चाहता था। उसने गहरी रिसर्च कर अंतरिक्ष से आने वाले एस्टेरॉयड में पचास से ज्यादा अमीनो एसिड खोज डाले थे जबकि जापानी वैज्ञानिकों ने हायाबुसा - 2 मिशन के अंतर्गत केवल 20 ऐसे अमीनो एसिड खोजे थे. योशिनोरी को अर्ध ज्ञान अहंकारी अपना सबसे प्रिय चेला मानता था। इन दोनों गुरु चेले का दिमाग हर समय अपना वर्चस्व स्थापित करने की दिशा में ही उधेड़बुन में लगा रहता। योशिनोरी ने अपने गुरू के संरक्षण में विज्ञान के क्षेत्र में धमाका मचाने वाले एक अविष्कार में काफी सफलता प्राप्त कर ली थी। रेप्लिकेर्टस के नाम से अभिहित इस नैनो टैक्नोलॉजी की विशेषता होगी किसी की कॉपी तैयार करना। जहाँ विश्व के महान वैज्ञानिक थ्री डी प्रिंटर्स की भांति काम करने वाली इस टैक्नीक से युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले हथियारों आदि से लेकर दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं के निर्माण का लक्ष्य लेकर चल रहे थे वहीं योशिनोरी का लक्ष्य था इंसानी कॉपी तैयार करना। वह यह तकनीक अपने गुरु अर्ध ज्ञान अहंकारी के चरणों में समर्पित कर उनके द्वारा की गई अपनी प्राणों की रक्षा का ऋण चुकाना चाहता था। जापान की सरकार ने जब योशिनोरी को मानवता के लिए खतरा बताते हुए जेल में बंद करने का प्रयास किया तब वह चालाकी से जापानी सरकार को चकमा देकर भारत भाग आया था और छिपते छिपाते घनघोर रात्रि में जगन्नाथ पुरी के स्वर्ग द्वार श्मशान पर पहुंचा। यह एक पवित्र पावन अघोर स्थल है। अन्य अघोरियों के साथ अर्ध ज्ञान अहंकारी भी तांत्रिक साधना में व्यस्त थे। प्रातः जब उन्होंने योशिनोरी को अर्द्ध चैतन्य अवस्था में पाया तब अपने अन्य शिष्यों को उसकी सेवा सुश्रुषा का निर्देश दिया। उसके स्वस्थ होने पर उन्होंने उसके अतीत और अद्भुत वैज्ञानिक प्रतिभा को जानकर अपने शिष्यों की मंडली में सम्मिलित कर लिया।अब वह संस्कृत व हिन्दी भलीभांति समझता व बोलता था। पिछले दस वर्षों से पुलिस योशिनोरी को हर राज्य नगर ग्राम में ढ़ूढ़ कर हार गयी पर अघोरियों में रले मिले योशिनोरी को न ढ़ूढ़ पाई।ढ़ूढ़ती भी कैसे? अर्ध ज्ञान अहंकारी के साथ कभी वह पश्चिम बंगाल के पूजनीय स्थल तारापीठ पर दिखाई पड़ता तो कभी वाराणसी की एक गुफा क्री कुंड में हिंगलाज देवी की प्रतिमूर्ति के समक्ष, कभी विन्ध्याचल में विंध्यवासिनी माता के मंदिर में, कभी अघोर पंथ के सम्मानित आचार्य दत्तात्रेय की जन्म स्थान चित्रकूट की स्फटिक शिला नामक महाश्मशान में, कभी हिमालय की तराईयों में नैनीताल से आगे गुप्त काशी से भी ऊपर कालीमठ नामक एक अघोर स्थल पर, कभी मदुरै के औघड़ौ के कपालेश्वर मंदिर में, कभी कोलकाता के मां कालिका के विश्व प्रसिद्ध मंदिर में। तंत्र मंत्र और विज्ञान के दो उच्च कोटि के साधक एक साथ जुड़े पर पापी उद्देश्य से। यही सबसे बड़ी विडम्बना थी।
इधर दादी मां, जूली व कैप्टन को सलेम से नामक्कल पहुंचने में एक घंटा तीन मिनट का समय लगा। दादी मां ने नामक्कल में कुछ देर रुककर मणप्पाराई की ओर चलने का निर्देश कैप्टन को दिया। मणप्पराई से पिल्लैयारपट्टी की ओर बढ़े। दूरी एक घंटा सत्ताइस मिनट में पूरी हुई. अगला स्टॉप कराईकुडी था। संध्या होने को थी अतः दादी मां ने कैप्टन को गाड़ी यहीं रुकवाने के लिए कहा। गाड़ी से उतरकर दादी मां ने कैप्टन से पिल्लैयारपट्टी में कोई रूकने का स्थान तलाश करने के लिए कहा। कैप्टन स्थान ढ़ूढ़ने के लिए गया और ड्राइवर लगातार ड्राइविंग से आई थकावट व हाथों में अकड़न को दूर करने के लिए थोड़ी दूर जाकर टहलने लगा। जूली भी थकावट महसूस कर रही थी। गाड़ी से उतरकर वह भी दादी मां के समीप खड़ी हो गई।
जूली पिछली घटी घटनाओं से थोड़ा तनाव में थी - यह दादी मां ने उसके चेहरे पर फैले संशय के भावों से अनुमान लगा लिया था । दादी मां जूली को इतने तनाव में नहीं देख सकती थी। उन्होंने जूली को सहज करने के लिए जूली से एक प्रश्न पूछा - '' लिटिल प्रिंसेस एक प्रश्न का उत्तर दे पाओगी? '' जूली ने इधर-उधर दूर तक देखते हुए कहा - '' प्रश्न??? दादी मां हम सोच रहे हैं कि आज शत्रु किस रूप में सामने आयेगा? मधुमक्खी के रूप में, सुंदर युवती के रूप में या किसी और रूप में?? वह देखिए दादी मां वह गाड़ी जो हमारी गाड़ी के समीप खड़ी है.... कहीं उसमें ही कोई हमारा शत्रु न हो और कहीं हमारी गाड़ी में ही फिर से बम लगा दिया गया हो तो.... ओ माई गॉड कैप्टन भी यहां नहीं है!!! '' यह कहते कहते जूली बहुत बेचैन हो उठी। दादी मां ने झुककर उसे गले से लगा लिया और साहस बंधाते हुए बोली - '' लिटिल प्रिंसेस इतना नहीं घबराते। तुमने देखा है ना कैसे भगवान भोलेनाथ और हनुमान जी हर क्षण पग पग पर हमारी रक्षा कर रहे हैं। देखा है ना? '' जूली को दादी मां की बात से कुछ सुकून मिला और वह शांत होते हुए बोली - '' आप ठीक कहती हैं दादी मां. हमें सदैव यह आभास रहता है कि कोई दिव्य शक्ति हमारे साथ हर क्षण रहती है. हम कभी किसी का बुरा नहीं सोचते दादी मां फिर यह बताइए जब हमने किसी के साथ बुरा नहीं किया तो हमारे शत्रु कहाँ से आ गये दादी मां? हमारा वध कर उन्हें क्या मिलेगा? बच्चों से कोई इतनी नफरत कैसे कर सकता है दादी मां? दादी मां अगर वह हमारे सामने आ जाये ना तो हम उससे यह सब प्रश्न अवश्य करेंगें। अब बताईये क्या प्रश्न करना चाहतीं थीं आप? '' जूली को सहज होते देखकर दादी मां ने बाल मनोविज्ञान को समझते हुए जूली द्वारा उठाये गये उपरोक्त सभी प्रश्नों को दरकिनार कर अपना प्रश्न पूछा -लिटिल प्रिंसेस क्या तुम कण्णगी अम्मा के विषय में जानती हो? '' जूली इंकार में गर्दन हिलाते हुए बोली - '' दादी मां हम नहीं जानते। आप बताईये ना। अम्मा तो मां को ही कहते हैं ना? '' दादी मां प्यार से जूली के सिर को सहलाते हुए बोली - '' हां लिटिल प्रिंसेस। कण्णगी अम्मा पूरे तमिलनाडु सहित इस संसार की माता ही हैं। मां मीनाक्षी देवी की अवतार कण्णगी अम्मा की कथा हर स्त्री को साहस प्रदान करती है। सुनना चाहोगी लिटिल प्रिंसेस? ''
(जारी)
भाग - 21
जूली उत्साहित होते हुए बोली - '' हाँ.. हाँ.. दादी मां हम अवश्य सुनेंगे कण्णगी अम्मा की कथा। सुनाईये ना। '' दादी मां को जूली की बाल सुलभ आतुरता पर अत्यंत हर्ष हुआ। धीरे-धीरे इधर-उधर टहलते हुए दादी मां जूली का हाथ पकड़ कर उसे कण्णगी अम्मा की कथा सुनाने लगी - '' लिटिल प्रिंसेस कण्णगी-कोवलन की कथा तमिलनाडु लोक-कथा में सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
कण्णगी-कोवलन की कथा "शिलप्पदिकारम" जिसका तात्पर्य है "पायलों की कथा" काव्य में वर्णित है।
पुराने समय की बात है चोल राज्य के बंदरगाह पुहार में माकटुवन नाम का एक समृद्ध व्यापारी रहता था । उसका एक पुत्र था कोवलन। कोवलन का विवाह पुहार के ही एक अन्य सम्पन्न समृद्ध व्यापारी मनायिकन की पुत्री कण्णगी से हुआ था । विवाह के आरंभिक कई वर्ष कण्णगी व कोवलन के अत्यंत प्रेम और परस्पर समर्पण के साथ व्यतीत हुए किंतु दुर्भाग्य वश एक दिन कोवलन पुहार की विख्यात नर्तकी माधवी का नृत्य देखने गया और उसके रूप सौंदर्य के मोहजाल में ऐसा फंसा कि कोवलन ने माधवी के लिए एक हजार स्वर्ण मुद्राओं का शुल्क चुकाया और पतिव्रता पत्नी कण्णगी का साथ छोड़ कर माधवी के साथ सुख ऐश्वर्य भोगने लगा । पतिव्रता पत्नी कण्णगी ने उससे अनेक बार वापस लौट आने की प्रार्थना की किन्तु माधवी के रूप सौंदर्य के मोहजाल में बुरी तरह फँसे कोवलन ने वापस आने से इंकार कर दिया। ।
नर्तकी माधवी से कोवलन को मणिमेकलाई नामक एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। लगभग तीन वर्षों तक कोवलन नर्तकी माधवी के साथ विलासी जीवन व्यतीत करता हुआ अपना धन वैभव उस पर लुटाता रहा किंतु जब कोवलन का धन भंडार समाप्त हो गया तब उसे अपने दुराचरण पर ग्लानि अनुभव हुई और वह नर्तकी को त्याग कर पतिव्रता पत्नी कण्णगी के पास वापस आ गया। नर्तकी माधवी ने कोवलन को वापस अपने पास ले जाने का हर संभव प्रयास किया किन्तु कोवलन कण्णगी को छोड़कर जाने के लिए कतई तैयार नहीं हुआ। ।
लिटिल प्रिंसेस जानती हो कोवलन के विरह में नर्तकी माधवी अनेक वर्षों तक अकेले ही जीवन व्यतीत करती रही और अंत में माधवी बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण कर संन्यासिन बन गयी।
दूसरी ओर कोवलन कंगाल हो चुका था। अब उसने ठाना कि वह मदुरई जाकर नया व्यवसाय करेगा। पत्नी कण्णगी के साथ वह मदुरई के लिए निकल लिया । चलते चलते राह में उन दोनों को एक वृद्ध साध्वी मिली। साध्वी ने पथ प्रदर्शक की भूमिका अदा की । इस तरह लिटिल प्रिंसेस वह तीनों जन मदुरै पहुँचे। कोवलन और कण्णगी ने मदुरै पहुंचने पर उन वृद्ध साध्वी का हार्दिक आभार व्यक्त किया और भारी मन से उनसे विदा ली। मदुरै में कोवलन कण्णगी के साथ एक ग्वाले के घर में रूका ।
लिटिल प्रिंसेस यह तो तुम जानती ही हो कि बिजनेस करने के लिए रूपये पैसे की आवश्यकता होती है। जानती हो ना? '' जूली ने बुद्धिमत्ता के साथ कहा - '' हाँ दादी मां और कोवलन के तो सारे रूपये पैसे खत्म हो गये थे फिर उन्होंने बिजनेस के लिए पूंजी कैसे जुटाई? '' दादी मां जूली को शाबाशी देते हुए बोली - '' बिल्कुल सही कहा लिटिल प्रिंसेस तुमने पर कण्णगी बहुत कुशल गृहिणी थी। उसने अपनी बेशकीमती पायल ऐसे ही कठिन समय के लिए बचाकर रखी हुई थी। पायल के जोड़े में से एक पायल उसने कोवलन को देते हुए कहा कि - 'आप इसे बेचकर व्यवसाय के लिए आवश्यक पैसा जुटा लीजिए। ' कोवलन भारी मन से वह पायल बेचने राजकीय जौहरी के पास पहुंचा। जौहरी उस पायल को देखकर आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि वह पायल बिल्कुल वैसी थी जैसी पायल वहां की महारानी की चोरी हो गई थी। दुर्भाग्य वश जौहरी ने कोवलन को चोर समझ लिया और इसकी सूचना जौहरी ने वहाँ के राजा "नेडुंजेलियन" को भिजवाई । न्यायप्रिय राजा नेडुंजेलियन ने अपने सैनिकों को जौहरी के पास जाने का आदेश दिया और कहा कि उस व्यक्ति के पास यदि रानी की पायल मिले तो उसे मृत्यु-दंड देकर वह पायल वापस लेते आना । लिटिल प्रिंसेस जानती हो सैनिकों ने जब गरीब कोवलन के पास इतनी बहुमूल्य पायल देखी तो राजा की आज्ञा के अनुसार उन्होंने कोवलन की सफाई पर कोई ध्यान दिये बिना ही उसका वध कर दिया और पायल लाकर राजा को सौंप दी जिसे राजा ने अपनी रानी को दे दी ।
जैसे ही कोवलन के वध का समाचार कण्णगी को प्राप्त हुआ वह प्रचंड कोप में राजभवन पहुँची और राजा को लताड़ते हुए उसने कहा कि तुम ने सत्य को न जानते हुए मेरे स्वामी की हत्या कराई है तुम्हारी न्याय प्रियता को धिक्कार है! राजा ने कहा कि मेरे राज्य में चोरों को मृत्यु दंड दिया जाता है और तुम्हारे पति ने रानी की पायल चोरी की थी।क्या तुम्हारे पास अपने स्वामी के निर्दोष होने का कोई प्रमाण है ' राजा की इस बात पर कण्णगी और भी कुपित हो उठी। उसने अत्यंत क्रोधित स्वर में राजा से कहा कि वह पायल मेरी थी और मैंने ही अपने स्वामी को वह पायल बेचने के लिए दी थी ।' कण्णगी ने अपनी दूसरी पायल(जो उसके पास थी) राजा के समक्ष प्रस्तुत की । राजा ने अपनी रानी से उस चोरी हुई पायल की शेष जोड़ी को मँगवाया। पायल कण्णगी के पायल से ही मिलती थी, रानी की पायल भिन्न थी । रानी की पायल मोतियों से युक्त थी जबकि कण्णगी की रत्न जड़ी पायल थी । राजा ने अपनी भयंकर भूल के पश्चाताप स्वरूप कण्णगी के सामने ही आत्महत्या कर ली ।
लिटिल प्रिंसेस बहुत भयानक परिस्थिति उपस्थित हो गयी थी क्योंकि निर्दोष पति की निर्मम हत्या से व्यथित कण्णगी का क्रोध राजा की आत्महत्या से भी शांत न हुआ। कण्णगी ने कुपित स्वर में कहा "हे विधाता ! यदि मैंने मन, वचन और कर्म से केवल अपने स्वामी कोवलन का ही ध्यान किया है, यदि मैं वास्तव में पतिव्रता हूँ तब इसी क्षण ब्राम्हणों, बालक-बालिकाओं और पतिव्रता स्त्रियों को छोड़ कर यह समस्त नगर जलकर भस्म हो जाये।" कण्णगी ने यह कहते हुए अपने हाथ से अपनी पायल को भूमि पर जोर से पटका जिससे प्रचंड अग्नि उत्पन्न हुई और समस्त मदुरै नगर जलकर भस्म हो गया। मदुरै नगर के भस्म होने के पश्चात भी जब वह अग्नि शांत न हुई तब पता है लिटिल प्रिंसेस क्या हुआ? तब स्वयं महादेवी मीनाक्षी प्रकट हुई और उन्होंने कण्णगी के प्रचंड क्रोध को शांत किया।''
जूली एकाएक उत्साहित होते हुए भक्तिभाव से बोली - '' महादेवी मीनाक्षी मां की जय! सती कण्णगी अम्मा की जय! '' तभी पीछे से किसी ने स्वर मिलाते हुए जयकार की। (जारी)
भाग - 22
यह कैप्टन था. कैप्टन ने पिल्लैयारपट्टी में रात्रि विश्राम का स्थान खोज लिया था। कैप्टन ने दादी मां को बताया कि पिल्लैयारपट्टी में स्थित करपगा विनयगर मंदिर जो तमिलनाडु के सबसे पुराने गुफा मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट ने कुछ यात्रियों के ठहरने के लिए कॉटेज बनवाये हैं। वही वह सब रूक सकते हैं रात्रि विश्राम के लिए। दादी मां के सहमति देने पर सभी गाड़ी में बैठकर मंदिर पहुंचे। स्नान आदि के पश्चात सभी ने भगवान विनयगर के दर्शन किए। उपस्थित पुजारी जी ने बताया कि यहां भगवान विनयगर दो भुजाओं के साथ प्रकट हुए हैं जबकि सामान्यतः भगवान विनायक चार भुजाओं के साथ विराजमान होते हैं। भगवान विनयगर के दर्शन कर सभी कॉटेज में रात्रि भोजन के लिए लौट आये। भोजन के पश्चात जूली दादी मां के पास ही सो गयी और कैप्टन सुरक्षा की दृष्टि से कॉटेज के बाहर टहलने लगा। रात्रि के बारह बजने आये थे। बहुत हल्का प्रकाश था और सब ओर सन्नाटा छाया हुआ था ; तभी कॉटेज से कुछ दूरी पर बने पार्किंग में एक गाड़ी आकर रूकी। कैप्टन और भी अधिक चौकन्ना हो गया। उसमें से उतरकर दो नकाबपोश हाथ में हथियार लेकर कॉटेज की ओर इशारा कर बढ़ने लगे। कैप्टन ने गहराई से उस दिशा में सूंघा। श्वान में गंध व श्रवण की अत्यंत विकसित क्षमता होती है। इस सूंघने की क्षमता का प्रयोग श्वान शत्रु व मित्र की पहचान के लिये करते हैं। प्रत्येक मनुष्य में अपने आहार एवं उपापचय में कुछ अंतर के कारण एक विशिष्ट प्रकार की गंध होती है।श्वान इन व्यक्तिगत गंध संकेतों को पढ़ने की क्षमता रखते हैं और इसी के आधार पर व्यक्तियों की पहचान कर पाते हैं। श्वान अपनी इसी विशिष्ट क्षमता के कारण काफी दूर तक गंध का पीछा कर सकते हैं। कैप्टन ने भी अपनी इसी सूंघने की क्षमता का प्रयोग उस दिशा में किया जिधर दोनों नकाबपोश व्यक्ति थे। जो सुगंध उसे आयी उसने उसे उत्साहित कर दिया। कैप्टन दौड़ कर उनके पास पहुंच गया। नकाबपोश दोनों जन कैप्टन को देखते ही घुटनों के बल बैठकर उसे सहलाने लगे। कैप्टन मुस्कुराता हुआ बोला - '' दोनों गुरु भाईयों का स्वागत है। सम्मानीय गुरुदेव कैसे हैं? आप गुरुदेव का आशीर्वाद लेकर चले हैं ना, उनके सामीप्य की गंध से ही मैं आपके विषय में अनुमान लगा सका।'' गुरूभाईयों ने अपने नकाब हटा लिए। दोनों ही सुदर्शन नवयुवक थे। उनके भाल पर तिलक लगा हुआ था। एक गुरूभाई ने दूसरे की ओर इशारा करते हुए कहा - '' ये भानु सिंह और मैं चंद्र प्रताप गुरूदेव द्वारा राजमाता जी व लिटिल प्रिंसेस की सुरक्षा के लिए भेजे गए हैं। आप सभी को गुरूदेव के आश्रम सुरक्षित पहुंचाना अब हमारी जिम्मेदारी है। कैप्टन आपके साहस व बुद्धिमत्ता की गुरूदेव ने भूरि भूरि प्रशंसा की है और कहा है कि एक गुरू के रूप में आपने उन्हें गर्व का अनुभव कराया है। '' गुरूदेव के प्रशंसात्मक वचनों को सुनकर कैप्टन भाव विह्वल हो उठा। कैप्टन ने नेत्र बंदकर गुरुदेव को ह्रदय से प्रणाम किया।
सुबह होने पर कैप्टन ने दादी मां व जूली का परिचय भानु सिंह व चंद्र प्रताप से कराया। भगवान विनयगर को प्रणाम कर व सुबह का नाश्ता कर दोनों गाड़ियां पिल्लैयारपट्टी से कराइक्कुडी होते हुए रामेश्वरम की ओर बढ़ चली।
कराईकुडी पिल्लयारपट्टी से लगभग तेरह किमी दूर स्थित है। कैप्टन की गाड़ियां पचास किमी प्रति घंटे की निरंतर गति से यात्रा करते हुए पंद्रह मिनट में पिल्लयारपट्टी पहुंच गयी ।जिस गाड़ी में दादी मां, जूली व कैप्टन थे वह पीछे पीछे चल रही थी और भानु सिंह व चंद्र प्रताप की गाड़ी आगे आगे।
दादी मां गुरूदेव का संकेत समझ रही थीं। गुरूदेव के आश्रम तक पहुंचने का यह पड़ाव खतरों से भरा हुआ था।
कराईकुडी पहुंचने पर दादी मां ने गाड़ी रोकने का निर्देश दिया। दोनों गाड़ियां रूक गयी। दादी मां स्वयं भानु सिंह के साथ आगे चलने वाली गाड़ी में बैठी व जूली को कैप्टन और चंद्र प्रताप वाली गाड़ी में सुरक्षित लाने का आदेश दिया।
कराईकुडी रामेश्वरम से लगभग 105 किलोमीटर दूर स्थित है, दोनों गाड़ियां पचास किलोमीटर प्रति घंटे की निरंतर गति से यात्रा करते हुए आराम से दो घंटे और चालीस मिनट में रामेश्वरम पहुँच सकती थी। दादी मां निरंतर सीता कवच का पाठ कर रहीं थीं -
नाम पहारू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट,
लोचन निज पद जंत्रित जाहि प्राण केहि बांट।।
गाड़ियां अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी तभी भानु सिंह ने दादी मां को नीचे झुकने के लिए कहा। दोनों गाड़ियों पर लगातार गोलियों की बौछार आरंभ हो चुकी थी। जूली व कैप्टन वाली गाड़ी की ड्राइविंग चंद्र प्रताप ने संभाल ली। दोनों गाड़ियां बुलेट प्रूफ थी पर शातिर शत्रु जो लगातार दोनों गाड़ियों से सटाकर अपनी गाड़ी चलाते हुए खिड़की के एक निश्चित स्पॉट को लक्ष्य कर रहे थे। कैप्टन ने अपनी पिस्टल ऑटो 9MM 1A से मौका लगते ही शत्रु पर निशाना साधा और सटीक निशाने के साथ हर बार एक शत्रु को ढ़ेर करते हुए सभी को यमलोक पहुंचा दिया. शत्रुओं की गाड़ियां अनियंत्रित होकर इधर उधर जा गिरी और जल कर भस्म हो गई.
थोड़ा और आगे सुरक्षित पहुंचकर भानु सिंह ने गाड़ी के ब्रेक लगाए. चंद्र प्रताप ने भी गाड़ी रोक दी। कैप्टन व जूली गाड़ी से कूदकर दादी मां के पास पहुंच गये। दादी मां ने हल्की नम आंखों से दोनों को गले लगा लिया। भानु सिंह ने जूली का अभिवादन किया व कैप्टन को गोद में उठाते हुए कहा - '' वैल्डन कैप्टन ।आज हमने तुम्हारे साहस व कौशल को अपनी आंखों से देख लिया। '' कैप्टन पूंछ हिलाता हुआ बोला - '' कमांडोज आप दोनों की ड्राइविंग भी गजब की है। एक भी गोली दोबारा खिड़की के शीशे पर एक ही जगह पर न लगने दी। '' चंद्र प्रताप पीछे से आते हुए बोले - '' बुलेट प्रतिरोधी गाड़ी में भी बुलेट से बचाव का यही एक उपाय है। यदि शॉट्स को फैलाया जाता रहे तो यह कितने ही शॉट झेल सकता है लेकिन यदि उन्हें एक ही स्थान पर दागा जाता रहे तो यह केवल चार या पांच ही रोक सकेगा । हमारी गाड़ी IIIA स्तर की गाड़ी हैं जिन्हें 9 मिमी से शूट किया गया है। शत्रुओं का इरादा ड्राइवर के दरवाजे की खिड़की पर इतनी बार गोली चलाने का था कि वे अपनी मुट्ठी अंदर कर सकें । उन्होंने शायद सब-मशीन गन का इस्तेमाल भी किया है । हमलावर अपने दो बड़े वाहनों से हमारी गाड़ी को जाम करने की फिराक में थे । मैंने गिन लिया है हमारी दोनों गाड़ियों पर पचास से अधिक बार गोली मारी गई और उसमें हम सब सवार लोग बच गए क्योंकि दोनों कारों में 22 मिमी का ग्लास था जिसमें अंदर की तरफ 3 मिमी पॉली कार्बोनेट लैमिनेटेड था और वे शीशे पर एक ही जगह बार बार गोली मारने की रणनीति में विफल हुए। बाकी शत्रुओं का काम हमारे कैप्टन ने तमाम कर दिया। यह निश्चित रूप से योशिनोरी की योजना रही होगी। '' योशिनोरी नाम सुनकर दादी मां चौंकी। उन्होंने कैप्टन की ओर देखा। कैप्टन योशिनोरी का परिचय देता हुआ बोला - '' दादी मां योशिनोरी धूर्त वैज्ञानिक व शत्रु कुलगुरू अर्ध ज्ञान अहंकारी का प्रिय शिष्य है। दुनिया की हर अत्याधुनिक तकनीक से वह परिचित है। वह जापान से भागकर यहां आया है और भारतीय पुलिस पिछले दस सालों से उसकी तलाश में है। ''
(जारी...)
भाग - 23
दादी मां जूली को चुपचाप सहमा हुआ देखकर उसके सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए बोली - '' लिटिल प्रिंसेस तुम क्यों चुपचाप हो? क्या डर गई हो? '' जूली थोड़ा सकुचाते हुए बोली - '' हाँ दादी मां। हमें आपकी बहुत चिंता हो रही थी। हम आपके ही साथ बैठेंगे गाड़ी में। '' दादी मां ने झुककर जूली को गले से लगा लिया और बोली - '' ओ माई डियरेस्ट प्रिंसेस! मुझे भी तुम्हारी बहुत चिंता हो रही थी। अब मैं तुम्हें अपने साथ ही रखूंगी। '' जूली व दादी मां में यह वार्तालाप चल ही रहा था कि कैप्टन हवा में कुछ सूंघता हुआ आगे जाने वाले रास्ते पर बढ़ने लगा। भानु सिंह व चंद्र प्रताप भी चौकन्ना होकर उस ओर बढ़ने लगे । कैप्टन सूंघता हुआ थोड़ा और आगे तक गया और फिर बहुत तेजी से दौड़ता हुआ वापस आकर भानु सिंह व चंद्र प्रताप के पास आकर रूका। भानु सिंह घुटनों के बल बैठते हुए बोले - '' कैप्टन क्या कोई खतरे का संकेत है? '' कैप्टन गंभीर स्वर में बोला - '' यस कमांडो। मुझे जाने वाली दिशा में से अमोनियम नाइट्रेट और अमोनियम पाउडर व आरडीएक्स की गंध आ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी वाहन में रखा हुआ है क्योंकि डीजल की गंध भी मुझे तीक्ष्णता के साथ महसूस हो रही है। कहीं योशिनोरी ने अर्ध ज्ञान अहंकारी के साथ मिलकर हम पर पुलवामा जैसा आतंकी हमले की योजना तो नहीं बनाई है? '' भानु सिंह गंभीर चिंतन करता हुआ बोला - '' गुरूदेव को इसी हमले की आशंका थी। खैर मेरे व चंद्र प्रताप के पास इसका सामना करने की रणनीति तैयार है। हमें देर नहीं करनी चाहिए। '' यह कहकर भानु सिंह उठा और अपनी गाड़ी की ओर बढ़ा। चंद्र प्रताप भी पीछे पीछे चला। भानु सिंह ने अपनी गाड़ी की डिक्की खोली व गाड़ी से संबंधित मशीनरी, पुर्जे आदि निकाले। लगभग आधे घंटे तक दोनों गाड़ी की मशीनरी में लगे रहे। पहले से जो ड्राइवर साथ था उसका तकनीकी सहयोग भी उन्होंने लिया। कैप्टन, जूली व दादी मां धैर्य के साथ सब देखते रहे। कार्य पूर्ण होने पर भानु सिंह व चंद्र प्रताप के मुख पर मुस्कान आ गयी। भानु सिंह बोले - '' चंद्र प्रताप अब प्रैक्टिकल देखते हैं। '' चंद्र प्रताप ने जय श्री गणेश जय श्री राम कहकर हाथ जोड़कर ऑपरेशन आरंभ करने का संकेत किया। चंद्र प्रताप ने गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठकर उसे स्टार्ट किया और उसे ऑटोपायलट ड्राइवर असिस्टिंग प्रोग्राम के माध्यम से
सेल्फी ड्राइविंग सिस्टम में कन्वर्ट कर दिया तथा तेजी से स्वयं बाहर कूदकर गाड़ी के साथ भागते हुए उसका गेट लॉक कर दूर हट गया।
इस गाड़ी में भानु सिंह व चंद्र प्रताप ने इंटीग्रेटेड कस्टम सेंसर्स, कैमरा और रडार आदि का इस्तेमाल किया था । साथ ही कार का सिस्टम इसमें लगे सेंसर्स और एल्गोरिदम से मिलने वाले डेटा का इस्तेमाल कर रहा था । यह एडवांस सिस्टम सड़क के गड्ढों, गलियों पर भी नज़र रखते हुए गाड़ी को निर्देशित दिशा में निश्चित स्पीड पर दौड़ रही थी । साथ ही यह कार इमरजेंसी डायवर्ज़न, रोडब्लॉक, ट्रैफिक जाम, खराब मौसम की स्थिति, भारी बारिश जैसी स्थितियों के साथ सामंजस्य बनाकर दौड़ रही थी । यह ड्राइवर रहित गाड़ी स्कूटरों, टैक्सियों और अन्य वाहनों के ग्रुप की भी पहचान भी करने में सक्षम थी । सेंसर की मदद से बिना ड्राइवर के चलने वाली यह गाड़ी लगभग 500 मीटर की दूरी तय कर पाई थी कि सामने से आ रही 50 किलो विस्फोटक से भरी एक कार ने उसमें सामने से आकर जोरदार टक्कर मारी जिससे बड़ा भयानक धमाका हुआ ।भानु सिंह की गाड़ी, हमलावर कार! व कार के ड्राइवर के शरीर के परखच्चे उड़ गये और धमाका इतना तेज था कि दूर दूर तक धरती हिल उठी। चारों ओर धुएं का गुबार छा गया।दूर से ही दुर्घटना की भयावहता का अनुमान लगाकर भानु सिंह, चंद्र प्रताप ने तुरंत दादी मां, जूली, कैप्टन व ड्राइवर को गाड़ी में बैठाया और अपनी गाड़ी कुछ शार्ट कट से निकाल कर दुर्घटना स्थल से आगे निकल आये।दादी मां ने इस बार जूली की ओर देखा तो विस्मित रह गयी। इस बार जूली के मुख पर भय के भाव नहीं थी बल्कि जूली की आंखें क्रोधाग्नि में दहक रही थी। ऐसा स्वरूप दादी मां ने मां काली का ही देखा था। वही महाकाली मां रक्तबीज से भयभीत देवता जिनकी की शरण में गए। भगवती दुर्गा का विकराल काला और भयाक्रांत करने वाला रूप , जिनका जन्म दुष्टों का संहार करने के लिए ही हुआ है । दादी मां को स्मरण हो आयी वह कथा जब महाकाली ने दुष्ट राक्षसों का संहार करने के लिए भयानक रूप धारण कर युद्ध भूमि में पदार्पण किया। मां काली हाथ में खप्पर लिए ,लहू टपकाती, गले में खोपड़ी की माला धारण किए शत्रु समूह को भयाक्रांत करने लगी। महाकाली ने ज्यों ही राक्षसों का वध करना आरंभ किया राक्षसी सेना घबराकर इधर उधर भागने लगी। यह देखकर रक्तबीज नाम के राक्षस ने आकर मोर्चा संभाला। रक्तबीज के रक्त की एक बूंद भी जब धरती पर गिरती तो उससे अनेकों दैत्य दानव उत्पन्न हो जाते । रणभूमि रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न राक्षसों से भर गई। वे सब भी रक्तबीज के समान ही शक्तिशाली थे। देवता भयभीत व निराश होने लगे तब माता काली ने चण्डी से कहा कि तुम अपने मुख को और भी फैलाओ। मेरे शस्त्र पात से गिरने वाले रक्त बिंदुओं से उत्पन्न होने वाले राक्षसों को तुम चट कर जाओ। इस प्रकार रक्तहीन हुआ यह राक्षस यहीं मेरे हाथ से मारा जायेगा और अन्य राक्षस उत्पन्न न हो पायेंगे जब तुम उसका रक्त पी जाओगी। । इस प्रकार महाकाली ने रक्तबीज का वध किया किन्तु मां काली का क्रोध विकराल रूप धारण कर चुका था। सृष्टि के कल्याण के लिए उनको शांत करना आवश्यक था। सभी देवताओं ने भगवान शिव से महाकाली के क्रोध को शांत करने के लिए प्रार्थना की । भगवान् शिव ने महाकाली के क्रोध को शांत करने के अनेक उपाय किए किंतु विफल रहे तब भगवान शिव महाकाली के मार्ग में लेट गए। महाकाली के चरण भगवान शिव पर ज्यों ही पड़े तो वे एकदम से ठिठक गई और उनका क्रोध शांत हो गया। दादी मां ने भी जूली के क्रोध को शांत करने के लिए उसे ह्रदय से लगा लिया। जूली भी दादी मां के स्नेह भरे स्पर्श से आह्लादित हो उठी और उसके नेत्रों में प्रेम व विश्वास की पवित्र गंगा छलक उठी।
उधर शत्रु कुल गुरु अर्ध ज्ञान अहंकारी का क्रोध अपनी हर विफलता के साथ प्रचंड होता जा रहा था. योशिनोरी के कुटिल से कुटिल षड्यंत्र मिट्टी में मिल रहे थे। अर्ध ज्ञान अहंकारी अच्छी तरह जानता था कि इसके पीछे किसके प्रबल गृह नक्षत्र कार्य कर रहे हैं? पर चाहकर भी वह उसका बाल भी बांका नहीं कर पा रहा था। जिस दिन से उसका जन्म हुआ था अर्ध ज्ञान अहंकारी की तांत्रिक साधनाएं विफल होना आरंभ हो गया था। वह मानों उसका काल बनकर ही इस धरती पर अवतरित हुई थी। लाखों कुंवारी कन्याओं की बलि देने वाले मुझ अघोरी से हर कन्या की बलि का प्रतिशोध लेने के लिए दुर्गा ने ही देह धारण की है - यह वह अघोरी मन ही मन जानकर उसकी हत्या करना चाहता पर विफल रहता ।
(जारी...)
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